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________________ (५०) कां श्रामण दमणो ॥ तव बोल्यो रे, पुरुष सह व्यति कर कहे; जिम पाउली रे चित्तमें चिंता अति वहे ॥ चाल ॥ ते वहे चिंता चित्तमांहे, एक नर बोल्यो तिसें; अति चतुर पंमित कुशल गुरुनो, वचन जासहीये वसे ॥सहु पुरुषनें कहे वेग जश्ने, करो स्नान शोहामणा; जाव शब्द करी बलिकर्म श्रापो, असन नीपजावं घणा॥४॥ ढाल ॥ तवबांधी रे, पलवट फरसी कर ग्रही; सर लीधो रे, श्ररणी काठ करे वही ॥ सरसेंती रे, अरणी काठ मधेघणु; करी अगनिने रे, तास करे संधूखणो॥ चाल ॥ संधूखण करी कस्या जोजन, पुरुष ते आव्यां सहु;करी स्नान वली बलि करम पाय, बित्त तिण कीधा बहु ॥ सुख श्रासणे हवे तेह बेग, तेह पुरुष हवे तिहां; आणीया अशनने पान नोजन, तेह बेग ने जिहां॥५॥ ढाल ॥ सहु विलसे रे, जोजन जमतां हरखशुं; वली लेई रे, मूरख पुरुषनें कहे इस्युं ॥ते मूरख रे, जट्ट घणु दीसे अजे; काठ कुटका रे, करीने अगनि जोवे पडे ॥चाल॥ तूं पड़े जोवे अगनिने तिहां, अगनि नवि लाने किहां; इंम जाणजे तुं राय मूरख, जड कहीयें ने श्हां ॥ तिण पुरुषश्री पण सबल मूरख, जीव ईम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005382
Book TitlePardeshi Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1901
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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