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________________ (yo) काठ लेवा, गनि जाजन कर ग्रही, पेठा सहु ते अ टवी मांहि, सगला गया कि दिसें सही ॥ एक पुरु बने कड़े एम जानुं, में अटवी आागलें; इण पात्र श्री तुंग नि लेई, करे जोजन पाबले ॥१॥ ढाल ॥ जो देख रे, अनि बूजी इस पात्र थी; तो काठथी रे, लेजे गनि तुं पथ ॥ ते लेई रे, जोजन नीपजावे स ही, ते पोहोता रे, काठ लेवा इषी परें वही ॥ चाल ॥ इंम कही टवी मांदी पेठा, हवे पुरुषते मूहूरतें; या वीयो जाजन पास करवा, अशन ते पुरुषां प्रतें ॥ तिहां देखी नवि गनि जिहां कि, काठ तिहां श्राव्यो वही; ते काठ जोयो ग्रही चिहुंदिसें, अगनी ari देखे नही ॥ २ ॥ ढाल ॥ ति वेला रे, पुरुष ते केड बांधी करी; ले फरसी रे, काठ जोवे टुकडा करी ॥ नविदेखे रे, अनि किहां खं खंगमें; कडी छोडी रे फरसी नाखी कहे में ॥ चाल ॥ कहे थाको तिघणो ते, अहो में पुरुषां जणी; नवि कस्यो जो जन शंकरूं दवे, चित्तचिता श्रतिघणी ॥ गलहत्रो देई तिहां बेठो, ध्यान चित्त भूंको धरे; हवे पुरुष सहु ते काठ बेदी, श्रावीया ति श्रवसरे ॥ ३ ॥ ढाल ॥ ते पुरुषनें रे, दीवो चिंतातुर घणो, तब पूबे रे, श्म For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org प ४ Jain Educationa International
SR No.005382
Book TitlePardeshi Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1901
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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