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(५१) दीसे किस्युं ॥ ते अगनिनी परें कहे मुनिवर, जीव तुं जाणे इस्युं ॥६॥ ॥ढाल अगवीशमी॥ राग गोडी ॥ गज मृग
मीन पतंग मधुकर ॥ ए देशी ॥ ॥केशी श्रमणनें कहे परदेशी, जुगति नहीं तुम ए ह॥तुमे अति पंमित चतुर विचक्षण शान तणो नहीं बेह रे ॥ केशी० ॥१॥ गुरु उपदेश लह्या प्रजु सगला, बुकि तणा जंमार ॥ पण जो इंम परखदमें बोलो, था करा वचन अपार रे ॥॥॥ जंचा नीचा वचन कहो श्म, वली करो अति आक्रोश॥तिरस्कार करी निगो, जुगत नहीं तुम रोष रे ॥ के० ॥३॥ तेवार षडी मुनि कहे सुण राजा, जाणे ए तुंनेदकेटलेने दें परखद होवे, बोल्यो राय उमेद रे॥ के ॥४॥ जाणु हुं परखद चिहुँनेदें, प्रथमतो दत्री केरी॥बी जी गाथा पतिनी जाणु, त्रीजी माहण केरी रे॥के० ॥५॥ चोथी ऋषिनी परखद कहीयें, बोड्या वली श्र णगार॥ईण चार परखद मांहे कोश, करे अपराध श्र पार रे॥॥॥तेहने दंम किश्यो हुवे राजा, जाणे तेह प्रकार॥जाणु ढुं राजा कहे स्वामी, सांजलो तेह विचार रे॥के०॥७॥करे अपराध जे दत्री परखद,
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