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( ६) प्रवचन तणो, जाणीयें किण उपाय ॥ आपणी बुकि करी केवली जे कयु, साखीय श्रीजिनराय ॥ जग ॥२॥ मंदमति माही जोडंता मन नहीं, अधिको उठो कहेवाय ॥ ढाल तुक नेलतां श्रांकणी मेलतां, सूत्र थाशातना थाय ॥ जग ॥३॥ पण कस्यो श्रा ग्रह श्रतिघणो श्रावकें, राज नगर अधिकार ॥ तेणें आग्रह करी एह रचना रची,पामी हरख अपार॥ जग ॥ ४ ॥ सूत्रनें श्रादरी एह अरथ कह्यो, केल वी बुद्धिन काय ॥ तो पण बद्मस्थ केवली वचननो, किम लहे हेतु उपाय ॥ जग ॥५॥ तिण हवेजे हां अधिको उदो कह्यो, बहुश्रुत सहु मन लाय ॥ शुरू कर जो सह शोधीने शुजमति, पातक दूर प लाय ॥ जग ॥६॥ मिछामि पुक्कड में दीयो हरखजु, अरिहंत सिझनी साख॥ केवलज्ञानीय साधु सहु दे खजो, नाव शुरूँ कहुं नाष॥जगण॥॥दूर होजो सहु पातक माहरां,श्रधिको उगे कह्यो जेह ॥ निरा जे थई महोटानां गुण जोडतां, हवे बहुं तिण जव नेह ॥जगण॥॥धन्य शासन महावीरचं सेवीयें, जिहां लह्या एअधिकार॥ कहे ज्ञानचंद सदगुरु सेवतां, पा मीयें शिवसुख सार ॥ जग ॥ए ॥इति परदेसी
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