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(३६) विवर परदेशी ॥ हो दृष्टांग ॥७॥ जिण बिझें करी शब्द ते राजा, मांदेथी निकटयो बाहिर ॥ राजा कहे को बिजन हु, तो श्म जाणे जाहिर ॥ हो दृष्टांग ॥ ॥ गुरु केशी कहे जीव अरूपी, गति तेह नी न हणाय ॥ पुढवी जीत सिहा परवतर्ने, नेदी बाहिर जाय ॥ हो दृष्टांग ॥ए॥ हो परदेशी केवली जाणे, तेह सरूप तो राया ॥ तिण कारण तुं सदह साचुं, जूश्रा जीवने काया ॥ हो दृष्टांग ॥१०॥त्रीजा प्रश्ननो उत्तर नांख्यो, केशी सदगुरु साचो ॥ रायप सेणी बीय उवंगें, रूडी परें हवे वांचो ॥ हो दृष्टांत ॥ ११ ॥ २३ ॥ ॥ ढाल अढारमी॥ राग परजी॥श्र
रंग महेलमें रे लालन ॥ ए देशी ॥ ॥ तेवार पड़ी राजा कहे लालन, केशी श्रमणनें एम रे ॥ मन मोहन स्वामी ॥ ए नगवन उपमा हुवे रे लालन, प्रज्ञा बुद्धिथी तेम रे ॥ मनमोहन खामी ॥१॥ तेवार पली राजा कहे रे लालन ॥ ए यांकणी ॥ पण श्ण कारण हेतुथी रे लालन, मुज ने नावे शुकि रे॥म ॥ जीव काया जूश्रा नहींरे लालन, एहवी मुज मन बुद्धि रे ॥ म ॥ ति॥२॥
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