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________________ (१७) अतिजला॥ए थाण मानी खामीनी हवे, तेह थानक श्रावीने, चउ घंट रथ करे सजा सुंदर, कोडंबिक नर तेडीने ॥१॥ ढाल ॥ माथे नत्र शोहामणु, सुंदर ध्वज लदकंतो रे॥तरुणा तेजी जोतस्या, रथकरीसऊतुरं तो रे ॥ चाल ॥ तुरंत रथ करी सजायावी, आण श्रापी ईण परें ॥ एवातसुणी करी चित्र हरख्या,क ख्या स्नान तव बहुपरें ॥ शोनंत सुंदर वस्त्र पदेख्यां, चित्र हरख ने अतिघणो,जवावी बेग वहेल ऊप र,माथे उत्रशोदामणो ॥२॥ ढाल ॥ सेवकवृंदशंप रिवस्या, श्राव्या सदगुरु पासो रे ॥धर्म कथा वली सांजली,हरख्या चित्त उदासो रे॥ चाल ॥ उल्लास पाम्या चित्तमाहें, वांदी पोहोती परखदा॥कर जोडी केशी सामिने कहे,सारथी चित्र तेश्म मुदा ॥ नग वंत श्रम तणो खामी जाणो, पाप करी पूरण नस्या ॥ कर राति नकरे देश केर।, सेवकवृंदशु पारवस्या॥३॥ ढाल ॥ देवाणु प्रिय रायनें, जो कहो धरम विचारो रे॥ तो गुण होवे अति घणो, परदेशी सुखकारोरे ॥चाल॥सुखकार जाणो उपद, चौपद पसुवली पंखी जणी ॥ वलीसमण वाहण जिस्कु जनपद होसे शाता अतिघणी ॥ एवीनतिले खामी माहरी, धरजो चित्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005382
Book TitlePardeshi Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1901
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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