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( १४ )
चलिया सारथी चित्र ॥ रंगी० ॥ सेवकवृंदशुं परिव स्या, नेट बेइ विचित्र रंगी० ॥ २ ॥ रथ बेग रंगें क री, लांघ्यो देश कुणाल || रंगी० ॥ केश्यदेशें श्रावी या, मनमां दरख विशाल || रंगी० ॥ ३ ॥ जिहां नग रीसेतं बिका, जिहां मृगवन उद्यान || रंगी० ॥ ति हां श्राव्या चित्र सारथी, करवा काम प्रधान ॥ रंगी॥ ॥ ४ ॥ वनपालक तेडी करी, बोले बुद्धि निधान ॥ ॥ रंगी० ॥ देवाणु प्रिय जे कहुं, ते सुणजो देइ कान ॥ रंगी० ॥ ५ ॥ पास संतानी सकुगुरु, केशी नाम कु मार ॥ रंगी० ॥ गामथी गामें विहरता, चालता सांधु विहार ॥ रंगी० ॥ ६ ॥ श्रवशे सद्गुरु इहां सही, ति वेला ततकाल ॥ रंगी० ॥ वंदना करजो जावशुं, सहु मलीनें समकाल ॥ रंगी० ॥ ७ ॥ करजो एह निमंत्रणा, पीढ फलग संधार ॥ रंगी० ॥ सय्या देजो सूजती, पडिहारु संचार ॥ रंगी० ॥ ८ ॥ एह आदे शबे म्हणो, आणी देजो जत्ति ॥ रंगी० ॥ वन पालक ते सांजली, चित्र वचन बहु जति ॥ रंगी॥ ॥ ए ॥ दरखित हुआ श्रतिघणुं, संतोषाएं चित्त ॥ ॥ रंगी० ॥ कर जोडीनें इंम कहे, स्वामी श्राप तदत्ति ॥ रंगी० ॥ १० ॥ तेवार पछी चित्र सारथी, श्राव्या
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