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________________ (६७) धिग संसार असार रे॥दे॥११॥ स्नान करी परदेशी राजा, जमवा बेग जाम रे॥ विष संयोग करीने श्राण्या, अशनादिक सहु ताम रे ॥ दे० ॥१२॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे परदेशी रायनें, अशनादिक श्राहार ॥ विष संयोगें उपनी, वेदना विविध प्रकार ॥१॥ ऊजलीने पहोली घj, कर्कश कडुई घोर ॥ कठिन पुःख जिहां अतिघणुं, पुतणी परें जोर ॥२॥ सदेतां जे अति दोहिली, पित्त ज्वर वली काय ॥ दाह वली श्रति ऊपनो, म विहरे हवे राय ॥३॥ ॥ ढाल आडत्रीशमी ॥ सुजाणसी दण लाखी ___णो जाय ॥ ए देशी ॥अथवा, रे बेटी नली रे जणी तुं श्राज ॥ ए देशी॥ ॥ तिवार पडी हवे रायजी रे, राणी ऊपर रेख॥ मने पण द्वेष करे नहीं रे, जिनवर धरम विशेष ॥१॥ विवेकी ॥ देखो उपशम सार, जिनवर धर्म विचार, विवेकी, करे अणसण विस्तार, विवेकी, पामे नव निस्तार, विवेकी, श्णपरे सुक अपार, कि वेकी, देखो उपशम सार॥२॥ए श्रांकणी ॥ जिहां पौषध शाला अडे रे, हवे श्रावे तिहां राय ॥ पौष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005382
Book TitlePardeshi Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1901
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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