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(६७) राजा देश अंतेउर, आदर न करे मुड रे ॥ तो को शस्त्र प्रयोगें मारि, अगनि मंत्र वली गुज रे ॥३॥ सूरिकंत कुमारने थापी, राज करुं हवे श्राप रे ॥ एम विचारि तेज्यो कुंवर, मनमां धरी बहु पाप रे ॥ देखो ॥४॥ सांजलो पुत्र कहे हवे देवी, जिणदिनथी तुज तात रे॥ हु श्रावक तेह दिवस थी, न करे राजनी वात रे॥दे॥५॥पुर अंतेजर नहीं को श्रादर, न करे माणस नोग रें॥ तिण का रण हवे तातने मारी, ले तुंराज्यनो जोग रे॥देखो ॥६॥ श्म करतां तुज श्रेय अडे पुत्र, वात सुणी हवे तेह रे ॥ सूरिकंत कुमार न बोले,आदर न करे एह रे ॥ देखो ॥ ७॥ राणी सूरिकंतानें इणि परें, उपनो चित्त विचार रे ॥ सूरिकंत कुमार पितानें, कहेशे तेह विचार रे॥ देखो ॥॥ राजा परदेशी ना दिन प्रत्ये, जिसने मरम अनेक रे ॥ अंतराजो ती मते विहरे, नहीं को चित्त विवेक रे॥देखो ॥ ए॥ तेवार पड़ी हवे सूरिकंता, अन्यदा किणे प्र स्ताव रे ॥ परदेशीनु बिज लश्ने कीधो एहवो नाव रे ॥ दे० ॥१॥शन पान खादिमनें स्वादिम, वस्त्र मक्ष अलंकार रे ॥ विष प्रयोग कीधा सहु राणी,
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