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श्रापणे गम ॥ हवे दिन उग्यां हो तिम करे राय जी, पूरवे जांख्यो जाम ॥ वैराण ॥ ए॥
॥दोहा॥ ॥ हवे परदेशी रायजी, श्रमणोपासक सार॥ हु उजीवाजीव बहु, जाण्या नेद विचार ॥१॥ निर तिचारें अतिजलां, वलि पाले व्रत बार ॥ चौदस श्राम पूनिमें, पौषध विधि विस्तार ॥२॥ हाम मीजी लगें धर्म वस्यो, शंका नहींय लगार ॥ पडि लाने वली साधुनें, सूजता शुद्ध आहार ॥३॥ जि ण दिनथी व्रत आदमु, तेह दिवसथी राय ॥ श्रादर न करे किहां कणे, न करे राज्य उपाय ॥४॥ बल वाहण कोगर बहु, पुर अंतेउर देस ॥ राग नहीं विण श्रादरे, विचरे इंम नरेश ॥ ५॥
॥ ढाल साडत्रीशमी ॥ राग आशावरी॥ सेवो पास जिनेसर स्वामी ॥ ए देशी॥ ॥ तेवार पड़ी हवे सूरिकता, श्म करे चित्त वि चार रे ॥ जिण दिनथी परदेशी राजा, श्रावक व्रत ग्रयां बार रे ॥१॥ देखो स्वारथ रीति सगाई, शर ण नहीं हां कोय रे ॥ श्रीजिनधर्म विना जगाहें, चित्त विचारी जोय रे ॥ देखो॥२॥ तिण दिनथी
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