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________________ (२६) ण ॥ पा ॥ १३ ॥ तिहां मुज ज्ञान ने चार सोहा मणां रे, नही मुज केवल नाण ॥ तिणे जगवंतना ज्ञाने जाणीयु रे, तुम मननो परिणाम॥पा॥१४॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे परदेशी इंम कहे, केशी श्रमण कुमार ॥ हुँ बेसुं श्ण नूमिका, बोल्या साधु विचार ॥१॥प रदेशी तुम नूमिका, वली ताहरो उद्यान ॥ जिम तुमे जाणो तिम करो, साधुनुं एह ज्ञान ॥२॥ राय परदेशी चित्रशु, बेग केशी पास ॥ नवि नेडा नवी वे गला, इंम कहे वचन विलास ॥३॥गाथा ॥ १७॥ ॥ ढाल बारमी॥ राग रामग्री ॥ वैराडी सुण बांधव मुज वातडी ॥ ए देशी॥ ॥ सुण नगवन मुज वातडी, तुम ए उपदेश ॥ श्रमण निर्यथनें साधुनु, ईम ज्ञान निवेष॥सु॥१॥ जीवनें काया जूजूश्रा, नही जीव ते काय ॥ वलतुं केशी मुनि जणे, हंता महाराय ॥ सु०॥२॥श्रम उपदेश के एडवो, जूश्रा कायाने जीव जीव काया एकज नही, इंम जाणो सदीव ॥सु॥३॥ वलतो परदेशी नणे, तुम ए उपदेश ॥ जीव अनेरो कायथी, नही एक निवेश ॥ सु० ॥४॥ तो मुज बाप तणो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005382
Book TitlePardeshi Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1901
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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