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________________ (२५) स॥ हंता खामी जावा योग्य रे, करीयें गोष्टि उ झास ॥ पा० ॥५॥ तेवारें परदेशी रायजी रे, बेश चित्रने साथ ॥ केशी सशुरु पासें श्रावीया रे, मुगति ने दीधो हाथ ॥ पा॥६॥ केशी श्रमणने परदेशी कहे रे, तुमेशुं श्रवधिना जाण ॥ जीवनें काया नां खो जूजूश्रा रे, हवे बोल्या गुरु वाण ॥ पा० ॥७॥ राजा जिम को जवहरी वाणीयो रे, अंक रतन व्या पार ॥ शंखने दंतनुं वाणिज्य करे वली रे, दाणनो जांजण हार ॥ पा॥०॥ मारग रूडी परें पूजे नही रे, इंणीपरेंजाणो राय ॥ तुमें पण विनयनें वांडगे नां जवा रे, रूडां नवि पूाय ॥ पा० ॥ ए॥ मुजने दे खी तुमनें उपनो रे, चित्तमां एह विचार ॥ जा जा तणी करे सेवना रे, जाव शब्द अधिकार ॥ पा॥ ॥ १०॥ एह श्ररथ समरथ डे रायजी रे, हंता क हे वली राय ॥ तेवारें परदेशी इंम कहे रे, केशीनें मन लाय ॥ पा ॥ ११ ॥ ज्ञाननें दरशन तुम कुण बेश्स्यो रे, जिणे जाणी मन वात॥केशी श्रमण कहे वलतुं श्श्युं रे, श्रमणनुं ज्ञान विख्यात॥पाण॥१५॥ पांच प्रकारे ज्ञान प्ररूपीयु रे, मति श्रुतने हिनाण ॥ मणपङावनें केवल जाणीयें रे, जांख्या नेद वखा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005382
Book TitlePardeshi Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1901
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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