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________________ (१२) जी रे वार ॥ सोजागी ते सुणी बोल्या हो केशी सा धुजी, सनिलो चित्र विचार ॥सोनागी॥ पू॥५॥ जिम, कोश् महोटोहो वनखंम सुंदरू, एह सुणो दृष्टां त ॥ विवेकी काली बवि होकर घणुं महमहे,जोवा सरखो रे खंत ॥ सोजागी ॥पू०॥६॥ते निश्चयशुं हो वनखंम चित्रजी, उपद चौपद मृग जोय॥सोना गी॥ पशुं पंखीने दो श्रादरवा जिस्यो, होय किंवा नविहोय ॥ सोजागी॥पू॥ ७॥ चित्रवदे हो हंता खामीजी, वली बोल्या अणगार ॥सोनागी॥ तिण व नखंमें दो परिवसे पापीया,जीव गातकना कार ॥ सो जागी ॥ पू० ॥ ॥ जिस श्रादेडी हो पारधीया व ली, उपद चौपद मृगजीव ॥सोजागी ॥ पशुं पंखीनो हो मंस श्रोणित घणो, आहार करे सदीव सोजागी ॥ पू॥ए॥ तिण वनखंमें हो किम चित्र सारथी, उपद चौपद अनेक ॥ सोजागी॥किणपरें आवे हो शंम चित्र जाणजो, चित्रकदे नवि एक रे ॥ वसीया ॥पू॥ १० ॥ कुण कारण हो इहां चित्र तें कह्यो, खामीजी उपसर्ग थायरे॥ वसिया ॥णी परें जाणो हो नगरी तुम तणी, जिहां परदेशी रे राय ॥ सोजा गी॥०॥ ११॥अधरम थरथी हो परिवसे तिहां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005382
Book TitlePardeshi Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1901
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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