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________________ (६१) ॥४॥ जिहां नगरी सेतंबिका तिहां किए, राजा जब मन या रे ॥ केशी कुमर कहे परदेशी, ऐहवी वात तुं जाणे रे || प्रति० ॥ ५ ॥ केटले नेदें दुवे श्राचा रज, परदेशी कहे जाणु रे ॥ त्रय नेदें होवे याचा रज, हवे ते एम वखाएं रे || प्रति० ॥ ६ ॥ कलाचा रजने शिलपाचारज, धर्माचारज कहीयें रे ॥ गुरु कहे तुं जाणे परदेशी, इसी परें ए जस लहीयें रें ॥ प्रति० ॥ ७ ॥ हंता जाएं स्वामी ईणीपरें, कलाचार ज जे होवे रे ॥ शिल्पाचारज जे वली बीजो, स्नान करावी धोवे रे | प्रति० ॥ ८ ॥ चंदन लेप करीनें ज पर, मंगण वली सहु कीजें रे ॥ फूल पहेरावी जो जन दीजें, प्रीतिदानवली दीजें रे ॥ प्रति० ॥ ए ॥ जीवे त्यां लगें जोगवे जोगा, पूठें वृत्ति करीजें रे ॥ धरमाचारज जिहां देखीजें, वांदीने नम॑सीजें रे ॥ प्रति० ॥ १० ॥ सत्कारी सनमान करीजें, देव चैत्य सेवीजें रे ॥ कल्याण मंगल कारक गुरुने, शुद्ध श्रा हार तो दीजें रे ॥ प्रति० ॥ ११ ॥ श्रशन पान खादि मने स्वादिम, वेगें पडिलाजीजें रे || पडिहारू पीढ फलगने सय्या, एह निमंत्रणा कीजें रे ॥ प्रति० ॥ १२ ॥ गुरु कड़े जो तुं इषपरें जाणे, तोपण श्म मन For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.005382
Book TitlePardeshi Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1901
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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