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(५६) श्राश्रव गम॥३॥श्म थाहार निहार वली,तिम उसा स नीसास ॥ कि अल्प युति तेहनी, कुंथुथी वली तास॥४॥कर्म घणा हाथी तणा, किरिया श्राश्रव गण ॥ श्राहार नीहार हुवे घणां, बल वीरिय अस मान ॥५॥हंता परदेशी सही, मुनि कहे गजथी जा ण ॥ अल्प कर्म हुवे कुंथुङ, गज महाकर्म वखाण ॥६॥तो किण कारण स्वामीजी, बेहु जीव समान॥ हाथीने कुंथु तो, तिहां हुवे कवण वखाण ॥७॥ दशमो प्रश्न इंश्यो वली, पूजे राय विचार ॥ केशी जिम उत्तर कहे, सांजलो ते अधिकार ॥७॥
॥ ढाल एकत्रीशमी ॥ राग सामेरी,
__ अमल कमल ॥ ए देशी ॥ ॥ देखो रे मेरे मुनिवरकी चतुराई, हेतु जुगति करी राय समजावे, करीदृष्टांत सखाई॥देखो॥१॥ कूडागार शाला एक महोटी, अतिगंजीर उदार ॥ हाथमां दीवो लेश पेसे, काश् पुरुष प्रकार ॥ देखे० ॥२॥ कूडागार शालामें पैसी, सहु ढांके तसु बार॥ एके देशे राखे दीवो, करें प्रकाश श्रपार ॥ दे॥३॥ तिण शालामें हुवे अजवाटुं,पण नवि बाहिर नासे॥ ते श्रालामें लेई मूके, तो तितरे प्रकाशे॥दे ॥४॥
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