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________________ (४६) तो श्म महारी ॥७॥ जीव काया एकज जाएं, जूया करी केम वखाणुं॥ सातमो ए प्रश्न वखाण्यो, पण जीव हजी नवि जाण्यो ॥७॥ ॥ उहो शोरठी ॥ ॥ केशी श्रमण कुमार, हवे परदेशी रायनें ॥ईम कहे उत्तर सार, सांजलो सहु मन लायनें ॥१॥ ॥ ढाल पच्चीशमी ॥ पधडी बंद ॥ यत्तिणि ॥ ॥ हवे कहे उत्तर सार, केशी ते श्रमण कुमार॥ दृष्टांत एक सुणो राय, मन जेम निश्चल थाय ॥१॥ पूरखें किणही गम, तें दी धमण विराम ॥ वाय जरी दीवडी केम, राय कहे हंता एम ॥२॥ वाय जरी दीवडी जोय, वलि तेह गली होय ॥ गुरु कहे तोलंता तेह, कोश् फेर होवे रेह ॥३॥ वायनरी नहुवे जार, वली गलीयें नहीं उतार ॥ इंम कहे राजा जाम, तव बोलिया गुरु श्राम ॥४॥ण परें जाणो राय, नवि श्रधिको उडो थाय ॥ जीवनें तो बतां जार, गुरुलघु तणो व्यवहार ॥ ५॥नवि थडे को विशेष, जीवतां मूआं रेष ॥ तिण सद्दहो हवे राय, जूआते जीवनें काय ॥ ६॥ श्म प्रसन उत्तर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005382
Book TitlePardeshi Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1901
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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