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(६३) शोनतुं, शणगास्यां हो वली सघलां हाट ॥ पर०॥ ध्वज नेजा वली फरहरे, वली मलिया हो योध तणा बहु थाट पर॥६॥ कोणिकनी परें नीकट्यो, परदे शी हो राजा वंदन काज ॥ पर ॥ अंतेउर परिवा रद्यु, परवरियो हो चनविह सेन समाज ॥ पर ॥ ॥७॥पंचालिगम साचवी, गुरु वांदी हो पूरव श्ररथ विचार॥ विनय करीने खामणां, परदेशी हो मनशुद्ध वारंवार ॥ पर॥७॥हवे केशी गुरु रायनें, सूरिकता हो देवी प्रमुखने तेम ॥ पर महोटी परखद आगो, धर्म नांखे हो जीव दया बहु प्रेम ॥ पर०॥ ए॥
॥दोहा॥ ॥ हवे परदेशी रायजी, केशीसद्गुरु पास ॥ धर मसुणी वली मन धरी, पाम्यो हरख उदास ॥१॥ उव्या गुरु वांदी वली, केशी श्रमण कुमार ॥ नगर जावानें सज थया, गुरु कहे एम विचार ॥२॥ ॥ढाल पांत्रीशमी॥रागसारंगपगुमानी मीयां ए देशी॥
॥पहेलां थक्ष रमणिक अनोपम, पनी मत थाजे विरूप रे ॥ परदेशी राजा॥जिम वनखंम हुवे नदृसा ला, श्खुपल वाडा सरूप रे ॥परदेशी राजा॥१॥ मि थ्या मति अंधकूप रे॥पर ॥ रहेजो श्रलगा नूप रे ॥
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