Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 49
________________ (४) तो साची मति माहरी, हवे इणिपरे जगवन देख रे ॥ हवे ॥णे ॥ मुनि ॥६॥ जो ते नर टु कडा कीये, किहां देखत जगवन जीव रे ॥ तो हुँ सदहतो सही, जूश्रा जीव काय सदीव रे ॥ जून ॥णे ॥मुनि॥॥ तेहिज जीव काया सही, नहीं जूआ जीव शरीर ॥ श्राठमो प्रश्न पूरो थयो, जपे ज्ञानचंद जिनवर वीर रे ॥जपे॥णामुनिणा॥ ॥दोहा॥ ॥ तेवार पड़ी इणी परें कहे केशी श्रमण कुमार ॥ परदेशी राजा जणी, वचन तणो विस्तार ॥ १॥ तूं ते पुरुष थकी घj, अति मूरख राजान ॥तुब घj दीसे अजे, तेह थकी असमान ॥२॥ परदेशी पूजे इश्यु, कुणते पुरुष विशेष॥मूढ घणु हुँ जेथकी,तुब घणु सुविशेष ॥३॥ ॥ ढाल सतावीशमी ॥राग देशाख ॥ श्रीश्रे यांस जुहारीयें॥अथवा एकवीशानी देशी ॥ ॥ ढाल ॥ गुरु बोल्या रे, परदेशी राजा सुणो; जीव काया रे, इणिपरें हवे जूया गणो॥ केश पुरुष तो रे, वनना अरथी जाणीय, वन जीविका रे, जेह नी एम वखाणीयें ॥ चाल ॥ वखाणीयें एकदिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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