Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 61
________________ ( ६० ) ढुं धन्य पापी धन हीलो, हरि सिरि लाज विही ॥ ही पूनमने दिन बजायो, मूंगा लक्षण दीण ॥ नरे० ॥ १७ ॥ जो हुं वचन मानत ति वेला, इणि परें पामत जोग ॥ हुं पण सुख संयोगें विहरत, ईम करे ते बहु शोग ॥ नरे० ॥ १८ ॥ ईणी परें तुं परदेशी राजा, पश्चा ताप अपार ॥ मत पामे ति पुरुष तणी परे, लोह मि श्यामति जार || नरे० ॥ १९ ॥ एटले प्रसन उत्तर या पूरा, सूत्र वचन ईग्यार || परदेशी राजा प्रति बूजयो, ईहां किणे दरख अपार ॥ नरे० ॥ २० ॥ ॥ ढाल तेत्री शमी | राग मारुणी ॥ रुक्मिणी राणी मनविलखाणी ॥ ए देशी ॥ ॥ परदेशी राजा श्राणंदे, गुरु वांदी इंम बोले रे ॥ पश्चात्तापक हुं नहीं होतुं, लोह पुरुषनी तोलें रे ॥१॥ प्रतिबूज्यो रे परदेशी राय, सदगुरु केशी संगे रे ॥ तिल करजो रे सह सदगुरु सेव, जिम लहो रंग छा नंगें रे ॥ प्रति० ॥ २ ॥ देवाणु प्रियनें पसवाडे, वांढुं सुवा स्वामी रे ॥ केवली जाषित धर्म अनोपम, सू धा सदगुरु पामी रे ॥ प्रति० ॥ ३ ॥ गुरु कहे देवाणु प्रिय जिमसुख, मकरो इहां प्रतिबंधो रे ॥ धर्म कथा कहे चित्र तणीपरें, ले श्रावक व्रत खंधो रे ॥ प्रति० For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

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