Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 65
________________ ( ६४ ) पर० ॥ जाणी एह सरूप रे ॥ पर० ॥ २ ॥ कु ते वनखंग कहे परदेशी, रमणिक थइ रमणिक रे ॥ पर० ॥ श्रा ये गुरु कड़े सुण परदेशी, जिम वनखं सचिक रे॥ पर० ॥ ३ ॥ फूल्यो फल्यो वली हरीयो दीसे, तव रम पिक वनखं रे ॥ पर० ॥ जब पत्र फल फूल नहीं वली हरीयो, दीसे विरू ढंढ रे ॥ पर० ॥ ४ ॥ बीजे दृष्टांतें दवे नटशाला, गाये वाये जाम रे ॥ ॥ पर० ॥ नाचे हसे ने रमे बहु रामत, दीसे रम कि ताम रे ॥ पर० ॥ ५ ॥ गाये वाये नाचे नहीं कोश, तब विरुd नटशाल रे ॥ पर० ॥ त्रीजे दृष्टांत तो शेलडी वाटक, खाजे पीजे रसाल रे ॥ पर० ॥६॥ तव रमणिक दुवे इकुवाटक, ते विष दीसे विरूप रे ॥ पर० ॥ धान्य खलुं चोथें दृष्टांते, इणिपरें जाणो सरूप रे ॥ पर० ॥ ७ ॥ ति कारण परदेशी इणि प रें, कहीयें तुम राजान रे ॥ पर० ॥ मत थाय रम पिक थइनें, चार दृष्टांत समान रे || पर० ॥ ८ ॥ ॥ ढाल बत्रीशमी ॥ राग सिंधूडो मिश्र ॥ पुरि सादाणीह पासजिनेसरू ॥ ए देशी ॥ ॥ ते वार पढी हो परदेशी जणे, सुणजो केशी स्वामी || हुं नहीं था हो रमणिक होइनें, वली श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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