Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ (४५) सदहो रोचवो, जूधाजीवने काय रे॥ राय परदेशी तु म सही, दूर करो मन राय रे॥ केशी ॥७॥श्म गए प्रश्न उत्तर थया, ढाल थर त्रेवीश रे ॥ कहे ज्ञानचंद गुरु जे कहे, ते वात ने विश्वा वीश रे॥केशी ॥ए ॥ ॥ ढाल चोवीशमी ॥ राग सामेरी यत्तणी ॥ ॥ हवे बोले इम परदेशी, तुमें सांजलो मुनिवर केशी ॥ एतो प्रज्ञा बुधि विशेषे, कवी केरी उपमा लेखे ॥ १॥ पण श्ण कारण नावें, मुज रुदयतो शुधन श्रावे॥ जूश्रा वली जीवनें काया, ढुंतो जाणु एकज माया ॥२॥ एक दिन हुँ बेठो स्वामी, पर षद बेठी शिर नामी ॥ एक चोर आण्यो मुज पासे, कोटवालें बांधी उसासें ॥३॥ ते तो चोरने जीव तो तोड्यो, वली खते करी विण रोख्यो ॥ टुंपो देश जीवथी माख्यो, वली तोलीने में सास्यो ॥४॥ पण चोरते जीवतो मूर्ज, नवि जारी हबु दू ॥ कोई फेर पड्यो नवि टांक, जीवता मूत्र एके श्रांक ॥५॥ जो चोर ते एम तोलाणो, जीवतां मूशां वली जाणो ॥ जो फेर तिहां को देखु, तो जीवनें जूठे लेखुं ॥ ६॥ जो चोरने जीवतांमूत्रां, को फेर पड्यो नहीं जूत्रां ॥ नहीं हुई हलुङ जारी, साची मति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82