Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 44
________________ (४३) काया जूजूश्रां, नावे मुज सही चित्तें रे ॥परण॥२॥ जिमकोश तरुण पुरुष नवो, जाव शब्द अधिकारो रे॥ समरथ होवे वहेवा नणी, मोटा लोहनां नारो रे ॥ पर० ॥३॥ तरु सीसानो वली, खार तणो वली नारो रे ॥ परिवहे जिम तेहज वली, वृक्ष तणे अवतारो रे ॥पर॥॥ जरा जीरण काया थक्ष, शिथिल थया सहु अंगो रे॥ रूप विरूप थयो घणुं, गात्र तणो थयो नंगो रे ॥ पर० ॥ ५॥ दंमग्रही हाथें करी, विरल थ पड्या दंतो रे ॥ रोगें करी काया गली, जुब्बल वली एकंतो रे ॥ परम् ॥६॥ नूख्योनें तरस्यो घणुं, ते नर थयो जब ग्लानो रे, वहवा समरथ हुवे किमें, लोह नार असमानो रे ॥ पर॥७॥ तो हुँ सद्दडं रोचवू, जूश्रा जीवनें काया रे ॥ जो ते तरुण तणी परें, समरथ नहुवे मुनिरा या रे ॥ पर० ॥ ॥ जार सहु वहेवा जणी, ते जी रण अतिवृद्धो रे ॥ तो साची मति माहरी, मुज मन डे अति सूधो रे ॥ पर० ॥ ए॥ जीवकाया जूया नहीं, प्रशन हो ए जाणो रे ॥ श्म ज्ञानचंद वखाणी, सूत्र वचन मन श्राणो रे ॥ पर० ॥१०॥ सर्व गाथा ॥३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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