Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ (१५) नयर मकार ॥रंगी॥ जिहां परदेशी रायनो, प्रा साद उवार ॥ रंगी॥११॥ बाहिर राज्य सजा जि हां, तिहां राख्यो रथ रंग ॥ रंगी० ॥ रथथी ऊतरी सारथी, नेटणुं लेश चंग ॥ रंगी० ॥ १२ ॥ परदेशी राजा कन्हें,श्रावीबे कर जोडी ॥ रंगी० ॥ जयजय शब्द वधावीने, पूरण वंडित कोडी ॥रंगी० ॥१३॥ नेटणुं नक्ति करी दीये, हवे परदेशी राय॥रंगी॥ सतकारीचित्र सारथी, दीधी वेग विदाय॥रंगी॥१४॥ ॥दोहा॥ ॥शीख लश् राजा तणी, हवे ते चित्र प्रधान ॥ निजप्रासादें श्रावीया, पामी बहु सनमान ॥१॥निज प्रासादें श्रतिघणा, विलसे वंबित नोग ॥ तानमान तरुणी करे, नव नव सुख संयोग ॥२॥वाजे मृदंग म धुर ध्वनि, नाटक बम बत्रीश ॥ श्म विचरे सुख वि बसता, पूरे आस जगीश ॥३॥गाथा ॥ १२॥ ॥ढाल बाठमी फागनी अथवा सुरती महीनानी देशी ॥अन्य दिवस मुनि केशी, तिहाथी करे विहार ॥ पडिहारू देई पीढ, फलग सिङा संथार ॥१॥पांच सें साधुशुपरिवस्या, आव्या केश्यक देश ॥नगरी ना में सेतंबिका, मृगवन परदेश ॥शालेश्आ देश उद्यान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82