Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 39
________________ (३०) म ॥ तिम् ॥ ए॥ जिण छारें जीव श्रावीया रे लालन, बाहिरथी मांहि तेह रे ॥ म ॥ तो हुँ स दडं रोचवू रे लालन,जूश्रा जीवनें देह रे॥माति ॥ १० ॥ जो तिण कुंजी में किहां रे लालन, विजन हुन बेक रे ॥ म ॥ तो साची बुद्धि माहरी रे ला लन, जीवने काया एकरे॥ म॥तिः॥ ११॥चोथो प्रश्न पूरो थयो रे लालन, ढाल अढारमी एम रे ॥ म० ॥ ज्ञानचंद हवे सांजलो रे लालन, केशीगुरु कहे जेम रे॥मतिः ॥१२॥ सर्वगाथा ॥ ३५ ॥ ॥ उहो शोर ॥ केशीश्रमण कुमार, हवे परदेशी रायनें ॥ईम कहे उत्तर सार, सांजलो सहु मन लायनें ॥१॥ ॥ ढाल श्रोगणीशमी राग शोरठी वैराडी,गुरु रतनाकर एहवाहां एदवा ॥ए देशी॥ ॥ केशी मुनिवर श्म जणेहां इंम जणे, तुमे मा नोहो राय सुणि दृष्टांत॥तुं एहवोहां एहवो, जुथा जीवनें काय हो ॥ केशी॥१॥ लोद धम्यो धमा वीयो, पूरव किण गम हो ॥ ते परदेशी रायजी, हंता प्रनु श्राम हो ॥ केशी ॥२॥ वलतुं केशी मुनि लणे, ते अगनिमय थाय हो ॥ लोह धम्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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