Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 40
________________ (३५) सहु रायजी, हंता कहे राय हो ॥ केशी ॥३॥ तो वलतो केशी कहे, सुणो परदेशी राय हो॥ लोहमां किहां हु तिणे, को बिज्ने राय हो॥ केशी ॥४॥ जिणे छारें करी लोहमां, पैग मांहे जाय हो॥अग नि ते बाहेरथी सहु, श्म जाणे राय हो ॥केशी॥५॥ इंणिपरें परदेशी सही, जाणतुं चित्त हो ॥ जीवतो अप्रतिहत गति, न खलाय नित्त हो॥केशी॥६॥ पृथिवी नेदीने शिला, परवत पाषाण हो ॥ बाहि रथी पेसे सही, मांहे इंम जाण हो ॥केशी॥ ७॥ तिणे करी सद्दहो रायजी, परदेशी एम हो ॥ जीव काया जूया अडे, नहीं एकज तेम हो ॥केशी॥॥ चोथा प्रश्न तणो सही, दीधो उत्तर साधु हो ॥ चार प्रश्न उत्तर थया, थाये चित्त समाधि हो। केशी॥॥ ॥ ढाल वीशमी रागगुंग महार ॥ एकदिन दासी दोडती ॥ ए देशी ॥ ॥ तेवार पबी केशी प्रत्ये, कहे राय विचार रे॥ एह उपमा होय बुद्धिथी, निजमति अनुसार रे ॥१॥ राय कहे मुनि सांजलो, जूश्रा जीवने काय रे ॥ पण इण कारणथी करी, नावे मुज मन गय रे ॥ राय० ॥२॥ जिम को पुरुष महामती, नव यौव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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