Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३०) जिन शासन नीति वखाणी हो॥राण ॥ कहे ज्ञानचंद श्म वाणी, ए वातमें सूत्रथी जाणीहो॥रा॥ १६ ॥
॥ दोहा सोरठी ॥ ॥ हवे परदेशी राय, केशी श्रमण प्रतें कहे ॥ ए तो उपमा थाय, प्रज्ञा बुद्धि विशेषथी ॥१॥ ॥ ढाल चौदमी ॥ लाखा फुलाणीनां गीतनी
देशीमां ॥ राग खंनाती॥ ॥पण एकारण शुफ, नावे हीये माहरे ॥ जगवन कडं हवेतुऊ, दादी हुतीमाहरे॥१॥ण हिज नगरी मांहि, धरमें करी विचरेसदा॥ जोवे धरमनी वात, धर्मे वृत्ति करे मुदा ॥ २॥ श्राविका शुभ श्राचार, जाण्या जीव अजीवनें ॥ जाव शब्द अधिकार,पोसा साचवेशुज मनें॥३॥ईम निजातम नित्य, श्रावक गुण करी नावती ॥ विचरे सूजता अन्न, पाणी हो साधुनें आपती॥ ४ ॥ ते तुम कहेणी सामी, पुण्य करीने अति घणु ॥ काल करी काल मास, पाम्यु तेणे देवता पणु ॥५॥ हुं तसु पोतरो कंत, रतन क रंमक जिम सही ॥ अतिवालोएकंत, ते जो श्रावी मुज कहे ॥६॥ हुं करी धर्म अनेक, श्रावक व्रत पाली जलापूरव पुण्यनें योग, देवतणी लाधी कला
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