Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 32
________________ (३१) ॥७॥ तुं पण करजे पुत्र, जिनवर धर्म शोहामणो, पुण्य तणे परिमाण, पामीश सुख तुं अति घणो॥ इंम कहे ते मुज श्रावी, तो हुँ रोचवं सद्दडं जूदा जीवनें काय, तुम वचने साचो लहुँ ॥ ए॥ जो ते नवि कहे श्राय, तो साची मति माहरी ॥ जीवनें काया एक, एह प्रतिज्ञा मुज खरी॥ १० ॥ बीजो प्रश्न विचार,पूरण दृश्हां किणे ॥ हवे सुणो उत्तर सार,ज्ञानचंद कहे जिमगुरु नणे ॥११॥गाथा॥२३॥ ॥ उदो शोरठी ॥ ॥ केशी श्रमण कुमार, हवे परदेशी रायनें ॥ शम कहे उत्तर सार, सांजलो सहु मन लायनें ॥१॥ ॥ ढाल पन्नरमी॥ राग महार उलंगडीनी देशी॥ ॥रायजी रायजी करीने स्नान सोहामणु रे, धू प कडुल निंगार ॥ लईने लईने तुं पेसे थानक देव ने रे, उब पडग विस्तार ॥ १॥ रायजी रायजी वि चारो रूडं चित्तमा रे, पुरुष श्रावी तिणवार ॥ कोई क कोईक विष्टा घरने बारणे रे, इंम कहे उनो बार ॥ राय० ॥॥ श्रावीने श्रावीने महूर्त एक खामी इहां रे, वीशामो यो पेस ॥ सूईने सूईने विशेषे बली ऊना रहो रे, मुहूर्त रहो एक बेस ॥ राय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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