Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३३) हर्त रहीने जावो वेगशुं रे, प्रेम विचारो देव ॥ तिण समे तिण समे अल्पश्राउ मानवी रे, काल धरम लहे हेव ॥रायः ॥ ११॥ थानक थानक वि चारो चोथु हवे श्श्युं रे, मनुष्य संबंधि गंध ॥ जो यण जोयण ते चारने पांचशे विस्तरे रे, अशुन घणो पुरगंध ॥ राय ॥ १२॥ देवता देवता श्रावी न शके तिणे करी रे, जाणो थानक चार ॥ सदहो सदहो जीवनें काया जूजूश्रां रे, एहवो हेतु विचार ॥ राय ॥ १३॥प्रश्नप्रश्न उत्तर ए बीजो इंम कह्यो रे, रायपसेणी नवंग ॥ सदगुरु सदगुरु मलिया केशी सारिखा रे, परदेशी मन रंग ॥ १४॥ ॥ ढाल शोलमी ॥राग सिंधूडो॥ कागल लखी॥ दीधो रे, विप्रचाल्यो सीधोरे॥अथवा विन तीअवधारो रे, पुरमांहे पधारो रे ॥ए देशी॥ ॥ हवे कहे परदेशी रे. सांजलो गुरु केशी रे, ए वात निर्देशी उपमाथी कही रे॥कवि बुद्धि उपावे रे, मुज हृदय न श्रावे रे, इण हेतुने नावें श्म जाणो सही रे॥१॥ एक दिन सना मांहे रे, बेग उछाहें रे, एक चोरने सादे सेवकें आणीयो रे ॥ ते जीवतो रूंजी रे, लोह केरी कुंजी रे, ते चोर आरंजी बेइ
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