Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 36
________________ ( ३५ ) ॥ दोहा सोरठी ॥ ॥ केशी श्रमण कुमार, दवे परदेशी रायनें ॥ इम कड़े उत्तर सार, सांजलो सदु मन लायनें ॥ १ ॥ ॥ ढाल सत्तरमी, राग शोरठ, जाती ऊकडीनी ॥ ॥ दो दृष्टांत रायजी सांजल एक साचो, साला एक उदारा ॥ शिखर तणी परें चिहुंदिशि शोदे, गुत्ता गुत्त दुवारा ॥ हो दष्टां० ॥ १ ॥ वली बीपीजे बाहिर मांहे, जिहां नहीं वाय संचारा ॥ घणुं नि वाई ने वली जंकी, दीसे प्रति विस्तारा ॥ दो दृष्टां त० ॥ २ ॥ जेरी मंग लेईने पेसे, कोई पुरुष प्रका रा ॥ कूडागार शाला में पैसी, ते सालाना बारा ॥ दो दृष्टां० ॥ ३ ॥ सघली दिशि सघले परकारें, बिज रहित करी ढांके ॥ श्रांतरो विच राखे न किहां, विवर न एके यां ॥ हो दृष्टां० ॥ ४ ॥ लेइ कमाड aणु यति सबला, तिथ करि ढांके बारा ॥ कूडा गार शाला मध्य जागें, रहीने पुरुष प्रकारा ॥ हो दृष्टां० ॥ ५ ॥ मोटे मोटे शब्दें करीनें, मेरी दंशुं ताडे, ते निश्चयसुं शब्द पएसी, नीकली बाहेर पाडे ॥ दो दृष्टां ॥ ६ ॥ कहे परदेशी हंता स्वामी, तो वलतुं कहे केशी ॥ तिए शाला में होवे कोइ, बिझ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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