Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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मां, ऊतस्या साधुनें योग ॥ तप संयम करी जावता, विदरता सुख संयोग ॥३॥नगरीमा संघाडग, त्रिक चोके थर वात ॥ हरख्या लोक वांदण चड्या, पूर व विधि विख्यात ॥ ४॥ हवे वनपालक वात, सुणी हरख्या घणु चित्त ॥ जिहां केशी गुरु तिहां सहु था वे वांदे बहुजति ॥ ५॥ साधुने योग्य अवग्रह, दी धो हरख अपार ॥पडिहारुदेश्पीढ, फलग सियासं थार॥६॥ तेहनी करि निमंत्रणा, पू नामनें गोय ॥ हृदय धरी वली जश, एकग मल्या सहु कोय ॥७॥ मांहो मांदे कहे श्म, देवाणुप्रिक जोय ॥ चित्र सार थी जसु दरिसणां, वां सद्गुरु सोय ॥ ॥ जेहनां नामने गोत्र,सुणीनेहरखित थाय ॥ ते केशी गुरु श्रा विया, इहां किण हरख नमाय ॥ ए॥ तिण कारण हबे जईये,सारथी चित्रने पास ॥प्रीति वचन इंमक हीने, वीनवीयें उदास ॥१०॥ एह वचन सहु मानी, चाख्या नयर मकार ॥ चित्र सारथी पसवाडे, श्राव्या हरख अपार ॥११॥ करजोडीने जयजय, शब्द वधा वे नित्त ॥ जसु दरिशण नित्य वांडतो, देवाणुप्रिय चित्त ॥१२॥नामने गोत्र सुणीने, पाम्यो हरख अपा र॥ तेसद्गुरु श्हां श्रावीया, केशीनाम कुमार ॥१३॥
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