Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 24
________________ (३) रा०॥ मे ॥ १० ॥ टालतां घोडानी खेद, वात थ ई विचमा एक नेद ॥रा॥ तेसांजलजो हवे जव्य जीव, करजो सदगुरु सेव सदीव ॥रा॥मे॥११॥ सदगुरु सेवाथी सुख थाय, सदगुरु सेव्यां सहु फुःख जाय ॥रा॥ परदेशी तास्यो गुरु केम, सदगुरु संगें तरी तेम ॥ रा॥ मे०॥ १२ ॥ इंम जाणी करजो गुरु सुफ, हिंसानी जेम नावे बुद्ध ॥ रा० ॥ दया देखाडी टाले उरक, सहु संपद आवे शिवसुरक ॥ रा॥ मे॥१३॥ हवे देखे राजा जगवंत, केशी श्रम ण महा गुणवंत ॥रा ॥ बेग बहली परषद मांहिं धर्मोपदेश कहेता उन्हांहिं ॥रा ॥ मे ॥ १४ ॥ जमा जमू तणी करे सेव, मुंमाने वली मुंमज देव ॥रा०॥ मूरख बेग मुरख पास, अज्ञानी अज्ञानी दास ॥राण ॥ मे ॥ १५॥ईम संकल्प करे मन रा य, कुण ए पुरुषनें कुण कहेवाय ॥ रा० ॥ ज मूढ ने मुंग अज्ञान, सिरिहरि दीसे अति परधान ॥राण ॥ मे ॥ १६ ॥ दीपती दीसे सुंदर काय, शुं श्राहा र करे शुं खाय ॥ रा० ॥ शुं पीवे शुं खरचे एह, वली सेवकने ये तेह ॥रा० ॥ मे ॥ १७॥ जिण कारण ए पुरुष प्रधान, लोकांमें बेगे असमान ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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