Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 23
________________ (१२) परखी जे कदेवा तुखार ॥रा॥हवे बोल्या परदेशी राय, ते घोडा रथ जोतरो जाय॥रा॥मे ॥३॥श्राण करी राजा परमाण, रथ जोतरीया हय परधान रा॥ रथबेग राजा मनरंग, पहुतावली उद्यानप्रसंग॥रा ॥ मे ॥४॥ रथ योजन फेख्यो अनेक, केलवी बु फि वला सुविवेक ॥रा॥ तावडे लागी तरषा राय, रथवेगें वली बहु फुःख थाय ॥रा मे ॥५॥राय कलामणा ऊपनी काय, ते दणं एक हवे न सुहाय ॥रा॥ चित्र प्रधान प्रत्ये कहे एह, खेद पामे जे मुज घणो देह ॥ रा॥ मे ॥६॥ रथ पागे फेरो हवे वेग, जिम सहु दूर टले उदवेग ॥ रा०॥ रथ पालो फेस्यो परधान,श्राव्या मृगवन मांहें उद्यान ॥रा० ॥ मे ॥७॥ए जाणो खामी मृगवन्न, घोडा पण हुश्रा ने खिन्न ॥रा॥ खेद करीजें दूरे एह, रा जायें पण वात मानी तेह ॥रा॥ मे ॥॥ चित्र प्रधान महोटो बुद्धिवंत, मृगवन जिहां केशी नग वंत ॥ रा॥ तेहनें निकटें राख्यो धराय, परदेशीनें कहे सुणो राय ॥ रा॥ मे ॥ ए॥ घोडाने दीजें विश्राम, सुणी राजा ॥उतरिया ताम ॥रा ॥ चित्र प्रधान लेई हवे साथ, खेद उतारे पृथिवी नाथ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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