Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 28
________________ (१७) पिता, इण नगरी मांह ॥ हुँतो पापी अतिघणा, स हु जीवनें दाद ॥ सु० ॥५॥ ते तुम कहेणी अति घणा, करी पाप कगेर ॥ नरकमां नारकी उपन्यो, पा म्या कुःख घोर ॥ सु० ॥६॥ तेहनो पोतरो हुँ अर्बु अति वडूज कंत ॥ रतन करंमक जिम सही, वालो एकंत ॥ सु॥७॥ ते जो मुज श्रावी कहे, सुण पोतरा वात ॥ हुँ फुःखीयो थयो पापथी, हवे मक रे घात ॥ सु० ॥ ॥तुं पण थाईश मुज परें, उःखी यो दोजाग ॥ तिण कारण हवे मत करे, ए पुर्गति माग ॥ सु०॥ ए॥ तो हुँ साचो सद्दडं, आणुप्रतीत ॥ जीवनें काया निन्न बे, नहीं एकज रीतासु॥१॥ जो मुज श्रावी नवि कहे, दादो एकंत ॥ तो साची बु कि मादरी, जाणो जगवंत ॥ सु॥११॥ जीवने का या एक डे, नही जूदा तेह ॥ एणे कारण परनव नहीं, माहरो मत एह ॥सु॥ १२॥ पहेलो प्रश्न पूरण थ यो ईहां राखी ढाल ॥ कहे ज्ञानचंद हबे सांजलो, गुरु वचन रसाल ॥ सु० ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥१०॥ ॥दोहा सोरठी ॥ ॥ केशी श्रमण कुमार, हवे परदेशी रायनें ॥ ईम कहे उत्तर सार, सांजलो सहु मन लायनें ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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