Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 22
________________ (१) परदेशी नवि करे ॥ १० ॥ ढाल ॥ इंम सुणी कहे चित्र सारथी, केशी श्रमण कुमारो रे ॥ देश कंबो जथी श्रावीया, नेटणे चार तुखारो रे ॥ तुखारु तरु णा चार श्राव्या, तेह परपंचें करी॥ परदेशी रायनें खेश्यावं, सामी पासे हित धरी॥ तिण कारणे प्रजु रायनें तुमे, धर्म कहेजो श्रापथी॥ अगिलाणशुं हवे शंक टाली, इंम सुणी कहे चित्र सारथी ॥११॥ ॥दोहा॥ ॥ वलतुं केशी मुनि जणे, जाणीशुं तिण वार ॥ वंदन करी चित्र सारथी, पहुता नगर मकार ॥१॥ तेह पड़ी चित्र सारथी, हु जव परजात ॥दिन कर ऊग्यो दीपतो, तेजें करी विख्यात ॥२॥१६०॥ ॥ढाल दशमी॥राग काफी, राजा जो मले॥ए देशी। ___॥ हवे इंम चिंतवे चित्र प्रधान, सहु प्रजा सुख हुवे असमान ॥ राजा जो मले॥ केशी सदगुरुने ए कवार, तो राजा लदे धर्मविचार ॥ राजा॥१॥मैरे मनका मान्या तो फले॥ ए आंकणी॥ हवे परदेशी राजा पास, श्रावी वीनवे चित्र उदास ॥राजा० ॥ देश कंबोज तणा प्रजु चार, नेटणे थाव्या तरुण तुखार ॥रा ॥ मे॥२॥श्रावो खामी वनह मकार, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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