Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 18
________________ (१७) ॥ दोहा॥ ॥वात सुणीने एहवी, हरख्या चित्र अपार ॥श्रा शनथी जव्या तुरत, पाद पीठ ऊतार ॥१॥पगथी मूकी पानही,करी वली उत्तरासंग ॥ मांझे जोडीहा थ बे, सनमुख केशी संग॥२॥सात श्राउ पग सामु हो, जानें कर जोडि॥ शुभ वचन श्म उच्चरे, मानने मत्सर बोडि ॥३॥ नमोर्तुणं अरिहंतने,हथा जेह अनंत ॥ केशी गुरु प्रणमी वली, गुरु महारा नगवंत ॥४॥ धरमाचारज धर्मगुरु, धर्मना देसणहार ॥ तिहारयां हांथी हुं करूं, वंदना विविध प्रकार ॥५॥ म वांदी गुरु नावशु, सतकारी वनपाल ॥जीवे तिहां लगें जोगवे, दान दीये समकाल॥६॥ विपुल वस्त्र गं धे करी, मल वली अलंकार ॥ सतकारीने शीख धे, मनमां हरख अपार ॥७॥सर्वगाथा ॥ १४७ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ जाती जकडीनी, श्री नव कार मन ध्याश्ये॥ ए देशी ॥ राग गोडी ॥ ॥ ढाल ॥कोडंबिक नर तेडीने, म चे चित्त श्रादे शो रे॥देवाणुप्रिय सज हुवो, न करो ढील लवलेशो रे॥चाललवलेसनकरोढील ईहां किण, हवो सस उतावला॥अतिचपल चंचल तरुण तेजी, जोतरोरथ प२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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