Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ (१३) कणे, अधरम देखण हार ॥ विवेकी ॥ देशतणो हो पण जे नविकरे, रूडी परेंव्यवहार॥ विवेकी॥पू॥१॥ तिण नगरी में हो केम समोसरू, णी परें चित्र तुं जाण ॥ विवेकी ॥ ज्ञानचंद दाखे हो ज्ञानी गुरु घj, जाणो सूत्रनी वाण ॥ विवेकी ॥ पू० ॥ १३ ॥ ॥दोहा ॥ ॥चित्र सारथी श्म उच्चरे, सुणजो सदगुरु श्राम॥ तुम परदेशी रायशु, प्रजुजी केहो काम ॥ १॥ से तंबिका नगरी घणा, ईसरलोक अनेक ॥ कर जोडी प्रजु वांदशे, मन धरि हरख विवेक ॥२॥ सेवा कर शे शासती, देशे वली सतकार ॥ विपुल अशन पा ने करी, खादिम खादिम सार॥३॥पडिलाजण क रशे सदा, सूजता शुधबहार॥पडिहारुसय्या वली, पीढ फलक संथार ॥ ४ ॥ एहनी खामी निमंत्रणा, करशे हरख अपार ॥ श्म सुणि केशी मुनि कहे, जाणस्यां चित्र विचार ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ ११० ॥ ॥ढाल सातमी॥राग केदारोरिंगीलेथातमा एदेशी॥ ॥ तेवार पड़ी चित्र सारथी, वांदी केशी खामी, रंगीले सारथी ॥ केशी सद्गुरु पासथी, श्राव्या श्रा पणी गम ॥ रंगी० ॥१॥ राजमारग श्रावासश्री, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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