Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ ( ११ ) राजा परदेशी प्रत्यें, नेटणु देजो एह ॥ वीनवजों पगे लागीनें, साचो एह सनेह ॥ ३ ॥ म कहीने वोलावीया, सतकारी घे शीग ॥ चित्र चाल्या गुरु वांदवा, निज पग जरता विख ॥ ४ ॥ खंत करी गुरु वांदीया, केशी श्रमण कुमार ॥ धर्म सुणी हवे उठी नें, विनवे विविध प्रकार ॥ ५ ॥ सर्वगाथा ॥ २ ॥ ॥ ढाल बड़ी | राग सारंग तथा मल्हार ॥ रसीयानी देशी ॥ ॥ कर जोडीनें हो सदगुरु वीनवुं शीख दीधी मु ज राय रे ॥ वसीया ॥ हुं जाउं हुं हो नगरी आपणी, वांदी प्रभुना पाय रे ॥ वसीया ॥ १ ॥ पूज्य पधारो हो न गरी श्रम्ह तणी ॥ सेतंबिका नगरी हो चंग रे ॥ वसी या ॥ जो वा जोग्य हो सुंदर श्रतिघणु, समवसरो मनरंग रे ॥ वसीया ॥ पूज्य० ॥ २ ॥ तिवार पढी हो केशी मु निवरू, चित्र सारथीनी वाणी ॥ सोजागी ॥ श्रादर न करे दो नवि अंगीकरे, अबोल्या रहे जाण सोना ग़ी ॥ पू० ॥ ३ ॥ तेवार पछी हो वली चित्रसारथी, वि नवे बीजी हो वार रे ॥ वसीया ॥ वेग पधारो हो नग री अम्द तणी, चित्र वचन श्रवधार ॥ सोजागी ॥ पू० ॥ ४ ॥ केशी कुमार हो नवी बोल्या वली, कहे वली श्री For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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