Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ जाण्यो ए परम बो रे ॥ जिनवर वचन विना सहु, मन जाणे अन बो रे॥ श्रा०॥ ॥ चौदशने श्राप म वली, पूनमनें अमावास्या रे ॥परिपूरण पोसह करे, मन न धरे कां आशा रे ॥श्रा॥ए॥फिट कनी परें मन निर्मवं, धरे उघाडां बारो रे॥ते जाणे विध केवती, एह अरथ अधिकारोरे॥श्रा॥१०॥ राजादिक अंतेउरें, न करे कबहीं प्रवेशो रे ॥ सम कित रतन रतन श्श्युं गद्यु, हिंसा नही लवलेशोरे॥ श्रा०॥ ११॥ श्रमण निग्रंथ जे साधुजी,श्रशनादिक थाहारो रे॥पडिलाने अति सूजता, जिहां नही दोष लगारो रे ॥श्रा॥१॥पीठ फलग सिङा वली, संथा रो व पत्तो रे॥ पडिग्गह कंबल पूंबणो, औषध नै षज्य जुत्तो रे॥श्रा॥१३॥ईम पडिलाने साधुजी, नित्य धरे उत्तम शीलो रे ॥ व्रत पौषध उपवासरां, श्म दिन दिन जसु लीलो रे ॥ श्राप ॥ १४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ईम निजबातम नावशें, वोहोरे सारथ चित्र॥ राज्य काज जितशत्रुशु, सहु करे श्राप विचित्र ॥१॥ श्रन्यदा जितशत्रुराय वली, नेटबुं करी सहु सङ॥ चित्र नणी इंणी परें कहे, हवे पोहोचो निऊ रङ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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