Book Title: Pardeshi Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(ए) णदिसि श्राव्या तिणदिसें पढ़ता हरष अपार॥श्रा वकवत चोखां धरे,शंका नहीथ लगार ॥२॥३॥
॥ढाल पांचमी॥राग जैतश्री ॥ केली ____ करावे हाथीयो ॥ ए देशी ॥ ॥ तेवार पली चित्र सारथी, समणोपासक हूवा रे ॥ जीव अजीव जाण्या सहु पुण्य पाप लह्यां जूारे ॥१॥ श्रावक गुण हवे सांजलो,सूत्रतणो अधिकारो रे॥ जिण करणी श्रावक तरे, शंका दूर निवारो रे ॥श्रावण ॥२॥श्राश्रव संवर निर्जरा, किरिया बंध ने मुको रे॥ कुशल घ[ चित्र सारथी, जाण्यां सहु सुख पुरको रे ॥ श्रावण॥३॥ साह्य न वांजे देवर्नु, कर्म निकाचित जाणी रे ॥ जो नवि बूटे जिन जि सा, मनमां इंम मति आणी रे ॥॥ श्रावण ॥४॥ देव असुर नाग बहु मिले, जदराक्षस बहु नेदा रे॥ चूकावी न शके किमें,प्रवचनथी कुंवेदा रे॥श्रा०॥५॥ जिन वचने शंका नही, अवर धरम नहीं कंखा रे॥ फल प्रत्ये नवि शंका करे, श्म ग्रह्या धर्मना पंखा रे ॥श्रा ॥५॥ अरथ लह्या गुरुमुखथकी, वली धस्या हृदय मकारो रे॥पूबीने निश्चय कख्या,प्रवचन वचन विचारो रे ॥श्रा० ॥॥ हाडमीजी लगें धरम वस्यो,
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