Book Title: Pardeshi Rajano Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 7
________________ (६) रि सावळी शिवसुख गामी रे॥ ति॥ १६॥ समव सख्या प्रजु कोठग चेहरे, साधु विहारें उग्गह आई रे॥ ति॥ १७॥ संयम तप किरियापणे जावे रे, श्म केशी मुनि ज्ञानचंद गावे रे ॥ ति॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ सावजी नयरी तदा, संघाडग त्रिक चोक॥च चर चौमुख राज्यपथ,वातकरे ईम लोक॥॥टोलें टो दें लोक बहु, मलियां जननां वृंद॥जयजय शब्द हुवे घणा, मनमां परमानंद ॥२॥केशी गुरु श्राव्या शहां बहु श्रुतबहु परिवार ॥ जो गुरु वांदीजें इस्या, सफल होय अवतार ॥३॥ के घोडे केश गयवरें, केशरथ चढिया जाय॥खंत घणी गुरु वांदवा,मनमा हरख न माय॥४॥केश्पालखी बेसणे, केश्वली पाय विहार॥ केश वांदण के पूजवा, केश सुणवा श्रुत सार॥५॥ के मनशंका नांजवा, करवा प्रश्न अपार ॥ केश जाणीधर्म तप घणा, केश वली जित श्राचार ॥६॥ हणहण तेजी हय करे, गुलगुल शब्द गयंद ॥ घ पघण वाजे घूघरा, रथ बेग जनवृंद ॥ ७॥ इणि परें श्रावे लोक बहु, वांदवा सदगुरु पाय ॥ सेवा पर खद साचवी, बेग निज निज गय॥ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 82