Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 8
________________ षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन प्राकृत गाथामें रच्यो,ग्रन्थ काय पंचास्ति । जयसेनाचारज कियो, संस्कृतवृति प्रशस्ति ।।६।। बालबोध भाषा नहीं, मर्म न समझो जाय । तातें उद्यम हम किया, जिन चरणाम्बुज ध्याय ।।७।। भावार्थ-अपने स्वानुभव के द्वारा सिद्धको प्राप्त, कर्म विजयी, शुद्ध जीवमयी व नित्य आनंदको भागनेवाले परमात्माको मैं नमस्कार करता हूँ। उत्थानिका-यह कथा प्रसिद्ध है कि श्री कुमारनन्दि सिद्धान्तदेवके शिष्य श्रीमत् कुन्दकुन्दाचार्य देव जिनके पद्मनन्दि आदि ( ऐलाचार्य, वनग्रीव, गृद्धपिच्छ ) नाम भी प्रसिद्ध हैं, पूर्वविदेहमें गए। वहाँ वीतराग सर्वज्ञ श्रीमंदरस्वामी तीर्थकर परमदेवके दर्शन किये तथा उनके मुखकमलसे प्रगट दिव्यवाणीको सुन करके व उससे पदार्थों को समझकर शुद्ध आत्मीकतत्त्व सार अर्थ ग्रहण किया फिर लौटकर उन्होंने अंतरंगतत्त्व बहिरंगतत्त्वको गौण या मुख्यपने प्रत्यारे लियया शिवकुमार महाराजको आदि लेकर संक्षेप रुचिके धारक शिष्योंको समझानेके लिये इस पंचास्तिकाय प्राभृत शास्त्रको रचा। इसी अन्थका तात्पर्य अर्थरूप व्याख्यान यथाक्रमसे अधिकारों की शुद्धिके साथ किया जाता है ___ उपोद्घात-पहले ही "इंदसयवंदियाणं" इत्यादि पाठके क्रमसे १११ गाथाओं से पंचास्तिकाय छः द्रव्यको कहते हुए प्रथम महा अधिकार है अथवा यही अधिकार श्री अमृत चन्द्रकी टीकाके अभिप्रायसे एक सौ तीन ( १०३) गाथा पर्यंत है। इसके पीछे "अभिवंदिऊण सिरसा" इत्यादि पचास (५०) गाथाओंसे सात तत्त्व,नव पदार्थके व्याख्यान रूपसे दूसरा महा अधिकार है अथवा यही श्री अमृचन्द्रकी टीकाके अभिप्रायसे ४८ गाथा पर्यंत ही है। इसके पीछे "जीवस्वभावो" इत्यादि बीस गाथाओंसे मोक्षमार्ग व मोक्षका स्वरूप कहनेकी मुख्यतासे तीसरा महाधिकार है। इस तरह समुदाससे एक सौ इक्यासी गाथाओं के द्वारा तीन महा अधिकार जानने चाहिये। अब इस प्रथम महा अधिकारमें पाठके क्रमसे अंतर अधिकार कहे जाते हैं । एक सौ ग्यारह गाथाओं के मध्यमें "इंदसय" इत्यादि गाथा सात तक समय शब्दका अर्थ पीठिकाके व्याख्यानकी मुख्यता से है फिर चौदह गाथाओंमें द्रव्यों का स्वरूप पीठिकाके व्याख्यान द्वारा किया है । फिर पाँच गाथा कालद्रव्यको मुख्यतासे हैं । पीछे त्रेपन गाथाएं जीवास्तिकायका कथन करती हैं । फिर दस गाथाओंमें पुद्गलास्तिकायकी मुख्यता है । पश्चात् सात गाथाएं धर्म अधर्म अस्तिकायके कथनकी व्याख्यानरूपसे हैं, फिर सात गाथाएँ आकाश अस्तिकायके कथनीकी मुख्यतासे हैं । पश्चात् आठ गाथाएँ चूलिकारूप संक्षेप व्याख्यानकी मुख्यतासे कही हैं। इस तरह आठ अंतर अधिकारोंसे पंचास्तिकाय छः द्रव्यको कहते हुए प्रथम महा अधिकारमें समुदाय पातनिका हुई।

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