Book Title: Panch Pratikraman
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 18
________________ [ ६ ] उ०- हाँ, साङ्ख्य, योग, विदान्त आदि दर्शनों में आत्मा को चेतनरूप या सच्चिदानन्दरूप कहा है सो निश्चय नय । की अपेक्षा से, और न्याय, वैशेषिक आदि दर्शनों में सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि आत्मा के लक्षण बतलाये हैं सो व्यवहार नय की अपेक्षा से । 93 8 " पुरुषस्तु पुष्करपलाशवन्निर्लेपः किन्तु चेतनः । [मुक्तावति पृ० ३६ । ] अर्थात् - [ - आत्मा कमलपत्र के समान निर्लेप किन्तु चेतन है । + "तस्माच्च सत्वात्पारण। मिनोऽत्यन्तविधर्मा विशुद्धोऽन्यश्चितिमानरूपः पुरुषः” [पातञ्जलसूत्र, पाद ३, सूत्र ३५ भाष्य । ] अर्थात् पुरुष- आत्मा-चिन्मात्ररूप है और परिणामी चित्वसत्व से अत्यन्त विलक्षण तथा विशुद्ध है । + "विज्ञानमानन्दं ब्रह्म" [बृहदारण्यक ३ । १ । २८ । ] अर्थात् ब्रह्म-आत्मा - आनन्द तथा ज्ञानरूप है । -- "इच्छाद्वेषप्रयत्न सुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिङ्गमिति । " [ न्यायदशन १ । १ । १० । ] और ६ ज्ञान, श्रर्थात् १ इच्छा, २ द्वेष, ३ प्रयत्न, ४ सुख, ये अत्मा के लक्षण हैं । ५ दुःख "" + "निश्चयमिह भूतार्थ, व्यवहारं वर्णयन्त्यभूतार्थम् । [ पुरुषार्थसिध्युपाय श्लोक २ । ] अर्थात्-ताविक दृष्टि को निश्चय-दृष्टि और उपचार दृष्टि को व्यवहार दृष्टि कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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