Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
View full book text
________________ 128 पाइअविनाणकहा-२ कल्लाणरयणधरणी देसणा पारद्धा / पउरजणो पडिबुद्धो, केण वि विरइधम्मो, केणवि मिच्छत्तं उज्झिऊणं सम्मत्तं गहियं / सो पुण गुणायरो समयं उवलब्भ हरिसभरपुलइअसरीरो जगगुरुं पणमित्ता वयासी-'भयवं ! साहेसु पुव्वजम्मंमि किं अहं होंतो ?' त्ति महंतं एत्थ मज्झ कोऊहलं / अह जगगुरुणा तस्स उवयारं अवलोइऊणं रुद्दखुल्लगभवं पारब्भ नीसेसो पुव्वभवसव्ववुत्तंतो परिकहिओ / सो तं सोच्चा भयविहुरमाणसो जायगाढपरितावो वएइ 'नाह ! इमस्स पावस्स किं पायच्छित्तं होज्जा' ? जगगुरुणा भणियं-'भद्दय ! साहुविसयबहुमाणवेयावच्चपमुहसुहकिच्चं मोत्तूणं न अन्नेणं इह सुद्धी' / तओ घोरसंसारभीएणं तेण ‘पइदिणं मए पंचसाहुसयविसयवंदणपभिइकिच्चं कायव्' ति अभिग्गहो गहिओ / सो तं अभिग्गहं सम्म परिपालेइ, जत्थ य दिवसे पंचसया साहवो पडिपुन्ना न होंति, तत्थ दिणे सो भोयणं न कुणेइ / एवं छम्मासं जाव अभिग्गहं पालिऊणं तयणु संलिहियदेहो मरिऊणं बंभलोए देवत्तणेण समुप्पन्नो / तहिं ओहिबलेणं पुव्वभववुत्तंतं मुणिऊणं सविसेसजगगुरुसाहूणं वंदणाइंमि वढेंतो कमेण देवभवाओ चवित्ता चंपाए पुरीए चंदरायनरवइणो पुत्तभावेण उप्पन्नो / पुव्वभवसाहूसुं दढपक्खवायभावेण तत्थ वि सो धीमंतो मुणिणो दट्ठणं जाई सरेइ तोसं च उव्वहेइ / तत्तो मायपियरेहिं 'पियसाहु' त्ति जहत्थं तस्स नामं विहियं / तहिपि समत्थतवस्सिलोगविस्सामणाइपरो विविहाभिग्गहगहणिक्कबद्धलक्खो अपमाई पजंते संलेहणं काऊणं सुक्कपमुहकप्पेसुं तियससोक्खं अणुभवित्ता जहक्कम जाव सव्वढे सव्वुक्किटुं सुहं अणुभविऊणं एत्थ लद्धमणुअत्तो कयपव्वज्जो निरज्जविहियाराहणविहाणो निम्मोहो विणट्ठभवनिमित्तकम्मंसो सुरासुरविहियमहिमो सिवसुहं संपावित्था / उवएसो खुल्लगसमणस्सेहं, पमायजणियभवदुक्खरिंछोलिं' / सोचा सुसाहुसेवा-विहाणसत्ता सया होह / / 2 / / पमायपसत्तखुड्डगमुणिणो एगुत्तरसयइमी कहा समत्ता / / 101 / / -संवेगरंगसालाए 1. दुःखश्रेणिम् / /

Page Navigation
1 ... 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254