Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ लच्छी-सरस्सईदेवीणं संवायंमि कहा-१०८ 153 एवं खामण-खमणेहिं जीवा अञ्चंत-निम्महिय-पावसंघाया भवन्ति / खमणापरो य खमणों, अणुत्तरं तवसमाहिमारूढो / पफोडतो विहरइ, बहुभवबाहाकरं कम्मं / / 2 / / उवएसोखमणंमि खामणमि य, नछा फलमिह खमणवराणं हि / तुम्हे वि तहा सययं, भवेह आराहणिक्कपरा / / 3 / / सव्वेसिं खमणंमि खमावणंमि य चण्डरुद्दायरियस्स सत्तुत्तरसयइमी कहा समत्ता / / 107 / / -संवेगरंगसालाओ 10 अठुत्तरसयइमी लच्छी-सरस्सईदेवीणं संवायंमि कहा - - - - लच्छी-सरस्सईणं, संवाओ वुअए त्थ बोहगरो / सोचा तं झाइत्ता, जत्तो कज्जो सया सोक्खे / / 1 / / एगया लच्छीए सरस्सईए य विवाओ जाओ / सरस्सईए वुत्तं- 'जयंमि ममञ्चिय पहाणत्तणं, जओ मम अंगीकया जणा सव्वत्थ सम्माणं लहेइरे, 'जेण नरवई नियदेसंमि पूइज्जइ पंडिओ य सव्वत्थ' / हे लच्छि ! तुव रूवाई नाणगाईणि, तेसिं सिरंसि' जइ अहं चिट्ठामि तइया ववहारंमि लाहो होज्ज नन्नहा / अतो अहं चिय महईयमी / तइया लच्छीए भणियं-जं तुमए वुत्तं तं तु कहणमेत्तं, तुमए कास वि सिद्धी न होइ / जेण तए अंगीकया पुरिसा मयटुं सयसहस्सदेसेसुं परिभमंति, मए अंगीकयस्स समीवंमि आगच्छेइरे, सेवगव्व पुरओ चिढेइरे / वुत्तं च्च वयवुड्डा तवोवुड्डा, जे य वुड्डा बहुस्सुया / ते सव्वे धणवुड्डाणं, दारे चिटुंति किंकरा / / 2 / / अणेगाइं पियवयणाई वयंति, विविहकव्वेहिं नियकोसल्लं दावेइरे / तओ सिरिमंता पसन्ना हुवेइरे न अन्नहा / तम्हा तुमए अंगीकया पुरिसा मए अंगीकयस्स सेवगसरिसा हवंति / मयंगीकयस्स दोसा वि गुणत्तणं पावंति। अओ जयंमि अहं चिय महईयमी / जइणसाहुणो विणा पाएण जे जे पुरिसा तुमं सेवेइरे ते वि य ममत्थं चिय। तेसिं हि सत्थब्भासोविसत्थविसारओ होऊणं बहुविं लच्छिं पाविस्सं ति सज्झसाहणठे एव / 1. क्षमणः / / 2. शिरसि / / 3. मदर्थम् / / 4. मदङ्गीकृतस्य / /

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