Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 223
________________ 198 शब्द पप्प पराववायईसापरा कक्करा भुंजाविओ 90 96 22 orormurvs 93 105 कुपत्तणेण कसिणमुहो सुगो खालसंठिओ छण्णं आयरम्मि शब्दार्थ પામીને कहा-९० 52. 256, ५२निंही ઈર્ષા કરતી કંકર જમાડ્યો कहा-९१ કુપાત્ર હોવાથી ખિન્ન મુખવાળો પોપટ ગટરમાં રહેલો ગુપ્તપણે આદરણીયને कहा-९२ मध्यन म પોતાના ઘરે પ્રકોપ માટે તપસ્વી યુગલ સહિત બ્રાહ્મણ શોધે છે सद्दकोसो-२ (कथानुक्रमेण) | कथा | पृष्ठ पंक्ति शब्द शब्दार्थ कथा पृष्ठ पंक्ति 89 96 12 | भेत्तूण ભેદીને 92 103 7 कहा-९३ 90 96 18 | सीयंति हु:भी थाय छ 93 103 गवक्खम्मि ગવાક્ષમાં 93 104 90 96 24 | ण्हूसाओ - પુત્રવધૂઓ 93 104 1 नहगमणविज्जामंत्तं शामिनी विद्यामंत्र 93 104 -कोडरम्मि બખોલમાં . 93 105 12 | लोहाविद्वेण લોભના આવેશથી 93 105 कोडरसुसिरं पोलनु पोदए। 91 98 16 कहा-९४ भवुदहितरणी भवोधित२५॥ 94 106 7 91 98 25 | सग्गापग्गपुरसरणी स्प-अप (मोक्ष) 91 99 5 નગરીની સીડી 94 106 कंदुगं पिवानी म 94 106 92 100 11 | किं इमेण रंकरमणेण गरीब पतिथी सर्यु 94 106 22 92 100 11 अहोपहेण અધોપથ, અધોમાર્ગ 94 106 25 | सक्का સમર્થ 94 108 12 21 92 100 21 ह 94 108 / 21 | चलबिंदुचंचले गलिहु 4j यंयण 94 108 17 92 100 22 | थिरतं સ્થિરતા 94 108 17 92 103 2 | जहरिहठाणं यथायोग्य स्थाने 94 108 19 92 103 5 | हरिसवसुल्लसिय- बने 25 अवच्चाई पिव नियघरम्मि पकोवाय तवंसिजुगं समंजरि बडुओ गवेसंति अलीगं | खेयं

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