Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ सहकोसो-२ (अकारादिक्रमेण) शब्द शब्दार्थ कथा पृष्ठ पंक्ति शब्द शब्दार्थ आसासंती શ્વાસન દેતી 64 30 7 | उत्तीहिं ' ઉક્તિવડે आसासिआ આશ્વાસન અપાયું 58 8.16 उत्तेइयं ઉત્તેજિત आसासेइ આશ્વાસન આપે છે . 60 18 4 उत्तेयं ઉત્તેજિત आसिलिसेइ मेटेछ 103 133 7 | उदहिमज्झत्थिअ समुद्रनी वय्ये. 238 आसीवयणं આશીર્વચન 108 172 9 उन्नया ઉન્નત, ઊંચી आहेडय- શિકાર 83 82 1 | उप्पण्णा उत्पन्न छ आहरणाई અલંકારો 108 172 5 | उप्पित्थ- त्रस्त. आहविऊणं બોલાવીને 59 13 17 | उयरपूरणं પેટપૂર્તિ | उयारगुणजुत्तेहिं हरता गुए। सरित. इंदकयसिलाहाओ ईन्द्र ४२वी साधा-प्रशंसा 104 136 3 | उल्लावं या इच्छइरेगधणं ઈચ્છાથી અધિક ધન 59 13 18 | उल्लावणेणाथी. इहोपोहं | ઉહાપોહ 58 10 8 उवकण्णी- ઉર્ધ્વકર્ણવાળો उवद्दवरहियं ઉપદ્રવ રહિત ईसापरा ઈર્ષા કરતી 90 96 22 | उवयरिओ મોકલાયો | उवलक्खेमि ઓળખો છો उक्कडरोसक्कतो . य रोष २तो 61 20 -उववासत्तरूवं ત્રણ ઉપવાસરૂપે उक्कनाहा જાતિવિશેષ ઘોડાઓ 68 42 18 | उवसिलं . શિલાની નજીક उक्करडम्मि 42i 79 72 2 | उवस्सयम्मि ઉપાશ્રયમાં उक्करिससरूवं रोषनु स्व३५ 108 163 12 | उवाणहओ ચપ્પલ उच्छंगे ઉત્સગ ખોળામાં 68 43 4 | उवाहिं ઉપાધિ उज्जावालगमुहाओ धान पान भुमेथी 59 16 16 | उहण्हं આપણા બંનેમાંથી ઊંચે 108 166 4 उड्डकण्णा उर्व [व , त थ ने 108 156 5 ऊसाहवंतो ઉત્સાહવાળો उत्तं કહેલું 89 96 9 | ऊसुगरहियं ઉત્સુકતા રહિત 209 कथा पृष्ठ पंक्ति 68 47 16 108 167 8 108 165 8 62 23 28 108 165 6 63 28 4 106 146 18 62 23 6 83 83 12 106 147 2 94 109 27 108 159 16 84 84 28 67 39 79 73 84 84 6 108 169 5 81 75 26 89 95 5 108 166 25 108 155 3 سه ه م م ه 108 159 9 108 165 12

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