Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 232
________________ अ 207 कथा पृष्ठ पंक्ति 108 157 23 70 53 9 66 35 2 83 81 3 سه م ه 89 95 7 ه 86 90 12 59 14 ه ه س م सद्दकोसो-२ (अकारादिक्रमेण) | शब्द शब्दार्थ कथा | पृष्ठ पंक्ति शब्द / शब्दार्थ अणाहूआ બોલાવ્યા વિના अइसुजाओ . 108 172 21 | अणि? मनिष्टअइहीणं અતિથિને 79 71 2 अणिमिसच्छाई भनिभषे नयनो अंकदासुब्वासनी ठेभ 68 4 16 अणिसं स्ने पूर्व अंतयालम्मि અંત:શરણે 63 27 अणुकंपापयाणम्मि अनुपा महान अंतरावणे દુકાનમાં 65 32 अणुजाणित्था अनुशा मापे छे अक्कोसवयणेहिं माओश मया वयनाथी 62 23 7 | अणुण्णं અનુજ્ઞા अकम्हा અચાનક 62 25 25 અનુમોદના કરતો अक्कंदइ नि:सासो नछे 64 30 5 અનેક દ્વીપોમાં अगत्थो અગત્ય 72 57 2 अण्णराएहिं બીજા રાજા વડે अगोयरत्थाणे भगाय२ स्थानमा 108 168 7 अण्णह અન્યથા अचयमाणा असमर्थ 62 23 8 अतक्किया ઓચિંતા अच्चंतदुक्खदाइ- अत्यंत दु:45 अतक्किया ઓચિંતી अच्चंतदुरग्गहवसेण अत्यंत हुशन। ॥२५थी. 59 16 7 अत्थाणम्मि સભામાં अच्चब्भुयं मतिमभुत 104 139 17 | अदिट्ठपुवं પહેલાં ન જોયેલું अच्चमाणेण अत्यंत पडुमान पूर्व 80 74 4 | अद्दपत्तेहिं લીલા પાંદડાંઓથી अच्युषसग्गाम्म अय्युत वडामा 85 87 9 अद्दिसभावं અદૃશ્ય अच्छइस छो 65 33 9 | अद्दा / આદ્ર अटुंगपणाम | અષ્ટાંગ પ્રણામ 108 155 8 अद्धगसिज्जमाणं अा गणी गयेदी અઠમતપનું વૃત્તાંત 84 84 6 | अधिई આધિ, ચિંતા अणग्गलं અનર્ગલ-પુષ્કળ 108 174 23 | अप्पाउसाणं मल्प आयुष्य अणवज्जं અનવદ્ય-પાપ રહિત 106 149 7 | अप्पाहीणं પોતાને આધીન अणवस्यरत्तमणं अत्यंत प्रेमवाण। 68 46 23 | अमयछंटाए અમૃતના છાંટણા अणायंतो ન જાણતો 63 27 15 / अमयपाणं અમૃતપાન 78 69 6 108 157 23 108 172 16 68 42 29 108 156 25 108 170 10 68 50 2 106 148 16 64 31 5 108 161 2 62 23 17 108 169 28 84 84 10 104 141 5 अट्ठमतवत्तं

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