Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ 199 कथा पृष्ठ पंक्ति 98 118 20 98 119 1 98 119 5 98 119 6 98 119 8 98 119 10 98 120 1 शब्द शब्दार्थ रोमंचो Geeसित-रोमiयित अरिकरिविणासे 435. हुश्मनन विनाशम मणहरणं . मनोड२ कयासीपदाणा माशीवाद हेना। उल्लावणेण साथी जेत्तियमित्तं જેટલું માત્ર तिक्खुत्तो ત્રણ વાર आयाहिणपयाहिणं प्रहक्षि९॥ वेयड्डे વૈતાઢયમાં दिणयरुव्व सूर्यनी ठेभ देवविहियकणयकमले विनिर्मित उन भण. 752 आयनिअ આદરીને कहा-९५ खुद्दवित्ती સુદ્ર-તુચ્છ વૃત્તિવાળો आलविलं વાત-ચિત કરવા માટે गहिलो ગ્રથિલ कहा-९६ मयपायं महिपान कुट्टिऊणं કુટતાં कहा-९७ सिलाहित्था પ્રશંસા કરે कोउयगं કૌતુક सद्दकोसो-२ (कथानुक्रमेण) कथा पृष्ठ पंक्ति शब्द शब्दार्थ 94 108 23 कहा-९८ 94 109 4 | ममकेरं મારા 94 109 6 |सीयायवाइपीलं 31 ॥२भी महिपा 94 109 13 | हरिसंसूई वर्षन। सांसु 94 | पागरतिग- ત્રણ ગઢ 94 110 15 | वियाणियवई વિચારતી રહી 94 110 21 |एगपाक्खियं એક પક્ષી 94 110 21 ओसप्पिणीए અવસર્પિણીમાં 94 110 30 कहा-९९ 94 111 16 महुवगारिणं महान ७५.२री 94 111 18 | कम्मणाइपयोगकरणं आए। माह प्रयोग 94 111 24 | चित्तविवज्जाओ वित्तमम कारिमो इत्रिम कहा-१०० 95 112 | समायोजणम्मि सुं४२. आयो४ नम 95 112 વ્યાકુળ पहसंमज्जणटुं માર્ગ સાફ કરવા માટે 115 3 | कासवि કોઈનું 96 115 7 वट्ठलं વર્તુળ डज्झामो બળીએ છીએ 97 116 5 तयहीणा તને આધીન 97 116 10 99 121 5 99 121 17 99 121 25 99 122 2 16 वाउलो 100 123 12 100 123 15 100 123 16 100 123 100 124 2 100 124 6 100 125 4

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