Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh
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________________ 185 सद्दकोसो-२ (कथानुक्रमेण) | शब्द शब्दार्थ कथा पृष्ठ पंक्ति शब्द शब्दार्थ क था पृष्ठ पंक्ति कहा-५६ समुप्पण्णट्टज्झाणो मार्तध्यान उत्पन्न थये 57 6 5 दूइपलासचेइए तपास. यैत्यमा 56 3 4 | वुहा वृथा, गट महिड्ढीए महाद्विवाणा 56 3 5 | सेणिअनिवस्साणुण्णं श्र४ि २५नी अनुशा 57 6 14 असत्तोसरात 56 3 5 | महापुक्खरिणिं भाषष्ठरिए नारी पइव्वयत्तणओ पतिव्रत५५॥वाजी 56 4 1 | वियाहिया विहित २।या 57 6 22 निक्कलंको नि 56 4 3 | महापीलं . सूक्ष पी.31 56 6 23 सामिसुस्सूसणपरो स्वामिनी शुश्रुषामा तत्५२५६ 4 6 | जलसिणाणपासुकीपढमपत्थडं - પહેલો પ્રતર 56 4 8 भूअंजलमट्टिगाई आसु थयेगुं ४-माटी मा 57 6 24 गंतुमसमत्थो - જવા માટે અસમર્થ भत्तिभरुल्लसिसण्णिहिया નજીક 56 4 12 | अमाणसो मतिम२. ससित मनवाणो 57 6 27 सोहम्मकप्पे સૌધર્મ દેવલોકમાં 56 4 21 | खुण्णो ઘવાયેલો 57 7 2 चउपलिओवमाऊ या२ ५८योपभनु मायुष्य 56 4 21 कहा-५८ चुओ - ચ્યવન પામ્યો 4 22 | महालयाए મહાલયમાં 58 7 14 कहा-५७ सिद्धिवसहिं सिद्धिपहने सद्धालुजणा શ્રદ્ધાળુ જનો 5 4 | तड्डवियकण्णजुयलो विस्ती[ [युगल निच्चं નૃત્ય 57 5 6 | कोऊहलं use सत्थाणं स्वस्थाने 5 6 / महीहरो 20 महिड्डिओ મહાઋદ્ધિવાન કબજામાં -सड्ढधम्म શ્રાવકધર્મ સૈન્ય વડે નગરઘેરો -पवुड्डिं उवागया प्रवृत्ति उत्पन्न 27 . 57 6 3 | विणिवाइओ વિનાશ પામ્યો 58 8 8 मंदीभूआ મંદીભૂત-ઓછી થઈ 57 6 3 | पलाइउं ભાગવા માટે कालखेवं કાળક્ષેપ 57 63 3 | तण्हा તૃષ્ણા, તરસ 58 8 11 57 57 5 6 7 कुहरे 1 | ओक्खंदं

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