Book Title: Paiavinnankaha Part 02
Author(s): Kastursuri, Somchandrasuri
Publisher: Rander Road Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 217
________________ कथा पृष्ठ पंक्ति 73 60 3 73 60 3 ધડમાં पक्कलो - पहाणेहिं %3 હાડકાં 74 61 74 62 1 1 72 74 63 4 192 शब्द | शब्दार्थ लेझुम्मि માટીના ઢેફામાં पोग्गलिय- પૌગલિક कहा-७२ रेहा લીસોટા સમર્થ પાષાણો વડે से સેતુ, પુલ अगत्थो અગત્સ્ય कहा-७३ परित्थीसहोयरे ५२स्त्रीन। मावो. रायवाडिगाए રાજવાટિકામાં समायण्णिऊण सन्मान रीन મલીન મુખવાળા ढक्काए નગારું कक्कसा કર્કશ मित्तदोहिणा मित्रद्रोही निहओ નિધન सिच्छायारिणीए शिष्टायारी पच्चक्खीहुओ પ્રત્યક્ષ-પ્રગટ થયેલો तक्कराओ તેના હાથમાંથી ऊसुगेण ભ્રમથી बाढसरेण મોટા અવાજે सद्दकोसो-२ (कथानुक्रमेण) | कथा | पृष्ठ पंक्ति शब्द शब्दार्थ 71 56 5 | सई में पार 71 56 6 ढक्काए ઢાલ ઉપર पहार પ્રહાર 72 56 13 / 13 कबंधगओ 72 56 19 कहा-७४ 56 26 | आभासिऊणं બોલાવી 72 56 26 | हड्डाई | भिसं અત્યંત | चियामज्झाओ यिता मध्ये 73 58 5 कहा-७५ कुविंदाणं બ્રાહ્મણનો, પંડિતનો 73 58 10 |वयंसा મિત્રો 73 58 11 | जामिगेसुं જાગતા રહીને 73 58 15 | निसमिऊण સાંભળીને पिओ 73 कहा-७६ 73 59 1 | विप्पविण्णत्तेण प्राम।नी विनतिथी सद्ददाण શ્રાદ્ધદાન 73 59 4 कोउगंतु 73 59 5 | पगुणो अगुए, होशियार 59 7 ससरूवं સ્વસ્વરૂપને 60 3 पयडीकाउणंट रीने गणा 75 63 11 75 63 12 75 63 15 75 63 22 75 64 2 73 58 18 પ્રિય 76 65 76 66 4 76 66 6 76 66 10 76 66 17 76 66 18

Loading...

Page Navigation
1 ... 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254